
रानी शर्मा
घूँघट
मैंने औढा नहीं सिर्फ एक घूँघट , मैंने औढ़ी है थोड़ी सी लोक लाज मैंने निभा दी है थोड़ी मर्यादा और निभा दी है बुजुर्गों …
मैंने औढा नहीं सिर्फ एक घूँघट , मैंने औढ़ी है थोड़ी सी लोक लाज मैंने निभा दी है थोड़ी मर्यादा और निभा दी है बुजुर्गों …
बहुत याद तुम मुझको आती हों माँ कितने नखरे उठाती थी, तुम जो मुझे मानती थी, नहीं खाने बैंगन भिंडी, कहकर जो मै इतराती थी…
बहुत जला हूँ मैं , तभी तो तुम देख पाए.. वो राह , जिस पर चलकर.. पायी मन्जिल तुमने | जीता दिलों को तुमने || तेल मेरा थ…
तन्हा था विशाल सागर , एक रात, रूप की गागर . छलकती हुई चांदनी , गाती हुई कोइ रागिनी . आई थी उधर से , नि…