मैंने औढा नहीं सिर्फ एक घूँघट ,
मैंने औढ़ी है थोड़ी सी लोक लाज
मैंने निभा दी है थोड़ी मर्यादा
और निभा दी है बुजुर्गों की आशाये
और निभा दी है कुछ परम्परायें,
मैंने ओढा नहीं सिर्फ एक घूँघट
मैंने ओढ़ लिए हैं अपने संस्कार
और पा लिया है बिन मांगे सबका प्यार
मैंने छुपा ली है इन नैनों की कुछ चपलता कुछ चंचलता,
इनका झुकना, र्शमाना, मुसकुराना,
मैंने ओढा नहीं सिर्फ एक घूँघट
मैंने ओढ़ लिया है एक र्पदा
जैसे छुपा लिया हो मन मेरा
भाव मेरे मन के, जिसे पढ़ ना सके
कोई मेरे सिवा,
मुस्कुराती र्शमाती आंखें,
मौन सुकुचाते लब मेरे
मेहंदी रचे हाथ मेरे,
घुंघट की ओट में,
खिला उजली धुप सा रंग मेरा और
मुझे देखने को आतुर तुम्हारा मन
नजरें गढाए बैठा कबसे उत्सुक तुम्हारे नयन
कतई शांत माहौल में धड़कते दो दिलों का शोर है
यूँ तो है रात घनेरी पर समां ये कुछ और है...
रानी शर्मा
धौलपुर बाड़ी
राजस्थान