सन्नाटे के गलियारे में
आज फिर छन्नाक से
टूटा मन ।
चुप चुप मुझे निहारा करे
घर का कोना ।
जैसे पूछ रहा हो मानो
घर में होना ।
बच्चे के हाथों में दबकर
गुब्बारे के जैसे
फूटा मन ।
अनकही रही जो बातें
ताना मारे है ।
जीत उन्ही के खाते में
हम तो हारे हैं ।
आगे निकल गए हैं सारे
सगे संबंधी पीछे
छूटा मन ।
कितना डूब के उभरे हैं
इस ताल में ।
मीन के जैसे छटपटाए
इस जाल में ।
भावनाओं के आंगन में
जैसे गड़ा हुआ हैं
खूंटा मन ।
प्यारचंद शर्मा साथी
3 ई 55 नया हाउसिंग बोर्ड
शास्त्रीनगर भीलवाड़ा राज.
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