वन में पाखी ढूंढ रहा है
टहनी कोई, करे बसेरा ।
कोई सुरक्षित ठौर दिखे तो
अपने पर समेटे ।
लिख दे पल दो चार खुशी के
इस जीवन के पेटे ।
कोई जतन हो दिन पलटे
उठे कभी तो दुख का डेरा ।
बन में पाखी ढूंढ रहा है
टहनी कोई करे बसेरा ।
ढंकी अंधेरों के डैनो ने
सूरज की परछाई ।
सूरज भी अब कुम्हला कर
लुढ़का अंधी खाई ।
प्राची में सूरज निकले तो,
फिर लौट के आए सवेरा ।
बन में पाखी ढूंढ रहा हैं
टहनी कोई, करे बसेरा ।
बीते दिन, वो यादें सारी
मन ने बड़ी सहेजी ।
सुख के भाव में मंदी देखी
और दुखों में तेजी ।
सुख दुख दोनो लंगड़ी खेले
जीवन तो है खेल का घेरा ।
वन में पाखी ढूंढ रहा है
टहनी कोई, करे बसेरा ।
प्यारचंद शर्मा साथी
3 ई 55 न्यू हाउसिंग बोर्ड
शास्त्री नगर भीलवाड़ा राजस्थान
मो0 9468608462
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