समीक्षा -
पहेलियों में राम-बालकृति
रचयिता -डा.देवेंद्र देव मिर्जापुरी
" पहेलियों में राम"-शीर्षक चौंकाने वाला ही नहीं, जिज्ञासा पैदा करने वाला है -राम पहेलियों में?वे क्या पहेलियां हो सकती हैं,पढ़ने के लिए उत्सुक हो उठीं।अचम्भित हुई-पृष्ठ दर पृष्ठ सचित्र पहेली और उस पहेली का उत्तर भी।वाह! बहुत सुंदर पुस्तक -सरल भाषा,खेल खेल में याद हो जाने वाली पहेलियां। घटनाक्रम सरस्वती वंदना से प्रारम्भ होकर,राम का पूरा जीवन सरलता से आगे बढ़ता जाता है।पहली पहेली मां सरस्वती वंदना से प्रारम्भ होती है -
देने आयीं हैं ज्ञानासव
पुष्पहार इनको पहनाओ
ज्ञान ज्योति विद्या की देवी
क्या है इनका नाम बताओ?
1-मां सरस्वती
डा.देवेंद्र देव का आत्मकथ्य में मानना है कि इस भौतिकतावादी युग में नई पीढ़ी को अपने धार्मिक ग्रंथों जैसे गीता , रामायण-महाभारत, रामचरित मानस,श्री मद्भागवत आदि को पढ़ने में रुचि कम होना चिंता जनक है। धार्मिक ग्रंथों को जानने की उत्सुकता ही समाप्त प्राय हो गई है। रचनाकार का इस पीढ़ी को राम के पूरे जीवन वृत्त को पहेलियों के रुप में समझाने का प्रयास स्तुत्य है।
आर्ट पेपर पर छपी यह पुस्तक बरबस अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती है। पहेलियों से सम्बंधित चित्रों की अपनी छटा है।तीसरा सवाल ध्यातव्य है-
प्रथम वंदना गणपति जी की
विघ्नहरण सबके सुखदाई
नाम बताओ उसका जिसने
रच रामायण जग दिखलाई?
ऋषि बाल्मीकि
यहां रचनाकार एक नहीं दो सवाल सामने रखता है और संदेश देता है कि विघ्न हर्ता गणपति का पूजन स्मरण सर्व प्रथम होता है,उसके बाद रामायण के रचनाकार का नाम स्मरण कराना नहीं भूलता।
कहानी अपनी रोचकता के साथ राम का जीवन समेटे धीरे-धीरे आगे बढ़ती है।प्रश्न और उत्तर दोनों सीधी सरल भाषा में गेयता भी लिए हुए है। रचनाकार स्वंय छंदो का पारखी है।
अंताक्षरी के रुप में भी बच्चे इन पदों को स्मरण कर सुना सकते हैं। मैं समझती हूं कि इस तरह की विश्व में यह पहली पुस्तक है। पहेलियों में राम स्वंय को सबसे अलग और खास बनाती है। पढ़ते हुए अभिभूत हूं।यह पद देखें -
ओस कणों ने ही झुलसाया
पुष्पलता को ज्यों आंगन में
किससे कहा रहूंगी मैं भी
नाथ आपके संग ही वन में
६२-सीताजी
80 पृष्ठों में 216पहेलियां कलमबद्ध कर राम के पूरे जीवन वृत को विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए सामने लाने के साथ लंकापति रावण पर भी प्रश्न पूछना नहीं भूलते -
, था ज्ञानी पंडित महान वह
विविध कलाओं का भी ज्ञाता
दम्भी था लंकापति रावण
वाद्य कौन सा उनको भाता
215 वीणा
रचनाकार डा.देवेंद्र देव आत्मकथ्य में आत्म निवेदन करते हुए अपना उद्देश्य सामने रखते हैं। यहां वे सफल हैं। यह पुस्तक स्कूलों में कक्षा पांच तक के विद्यार्थियों के लिए खास है और उन तक पहुंचनी चाहिए जिससे नयी पीढ़ी राम के सम्पूर्ण जीवन से परिचित हो सके।
कामना करती हूं कि ये पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल हो और शीघ्र ही छात्रों के हाथों में पंहुचे। पहेलियों में राम अपने नाम के कारण अपनी अलग पहचान बनाए। जैसे तुलसी की चौपाइयां,रहीम कबीर के दोहे , सूरदास के पद खास है और लोगों की जुवान पर चढ़े हैं वैसे ही पहेलियों में राम अवश्य ही यह उपलब्धि प्राप्त करेंगे -ऐसा मेरा मानना है। पुस्तक के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ -प्रस्तुति
सुधा गोयल
290-ए, कृष्णानगर ,डा दत्ता लेन,
बुलंदशहर -203001, उत्तर प्रदेश