
सावन आया रे
सावन आया रे
बूंद बरसाता, बिजुरी चमकाता,
धरा का अंग अंग सरसाया रे
सावन आया रे...
नदियां अलसाई हुई थी अबतक
स्वयं में सिमटी हुई थी अबतक
पा बूंदों का उपहार, मन हुलसाया रे ।
पहाड़ बदरंग खड़ा था ले चुप्पी संग में
अब घटाओं ने रंगा उसको भी रंग में
पाकर सुंदर हरियाली, मन हरसाया रे ।
मयूर की थिरकन अजब निराली है
मेंढ़क की टेर निरन्तर, लगे सुहानी है
झिंगुर ने स्वर में स्वर अपना, खूब मिलाया रे।
ढेरों उत्सव लाता सावन
लगे धरा का आंचल मनभावन
सावन ने कलम व्यग्र की, को उकसाया रे ।
सावन आया रे... ।।
- व्यग्र पाण्डे (कवि/लेखक)
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