अपनी आदत से मजबूर पाकिस्तान ने फिर से भारत में आतंकियों की घुसपैठ करायी और भारतीय आम नागरिकों की जानें ले लीं | विवश होकर भारत को भी ज़वाबी कार्यवाही करनी पड़ी | इस बार पाकिस्तान की परमाणु हथियारों वाली धमकी भी काम नहीं आयी और उसे घुटने टेकने पर मजबूर होना ही पड़ा |
दुनिया का चौधरी बनने की तमन्ना तो कई देशों की है लेकिन विश्व-शान्ति के लिए उनके पास दुनिया के समक्ष रखने के लिए कई योजना नहीं | बात केवल भारत-पाकितान की नही | युद्ध तो कहीं भी नही होना चाहिए | निजी मकान तो दूर छोटे-छोटे फ्लैट खरीदने में लोगों की पूरी-पूरी उम्र निकल जाती है | जिस तरह से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में युद्ध में नष्ट हुए भवनों की तस्वीरें सामने आती हैं वे बड़ी ह्रदय विदारक होती हैं |
जो लोग युद्धों में घर से बेघर हो जातें हैं, अपने बच्चे, परिवार और सम्पत्ति खो देते हैं उनका दर्द कौन समझेगा और कौन सुनेगा ? बड़े युद्दों में तो पशु-पक्षी भी अपने प्राणों की रक्षा नहीं कर पाते | प्रकृति भी कराह उठती है |
किसी भी युद्ध के पीछे कोई न कोई सोच अवश्य ही उत्प्रेरक का कार्य करती है | आज जब मनुष्य अपने आप को सभ्यता के शिखर की ओर उन्मुख मान रहा है तो क्यों नहीं वो कुछ उपाय खोजता ? खुले मन से उन कारणों पर विचार किया जाना चाहिए जो जनहत्या और विनाश का कारण बनते हैं | अब चाहे वो कारण सियासी हों या मज़हबीं | आखिर संयुक्त राष्ट्र संघ बनाया ही किस लिए गया है जबवो किसी देश के नागरिकों पर होने वाले अत्याचारों को रोक नहीं सकता ? हाल ही में बांग्ला देश में एक समुदाय हिंसा से पीड़ित रहा और सारी दुनिया तमाशा देखती रही | किसी ने भी हस्तक्षेप करना आवश्यक नही समझा | केवल बांग्ला देश ही क्यों ? ये उत्पीडन तो दुनिया में हर समय किसी न किसी देश में हर समय चलता ही रहता है | दो देशों या किसी भी तरह के दो समूहों के बीच छोटी सी झड़प भी जनहानि और धनहानि का कारण बन जाती है |
समय आ गया है कि उन विचारों को चिन्हित किया जाए तो दुनिया और समाज में घृणा फैलाते हैं, टकराव का कारण बनते हैं और अन्त में बड़ी हिंसा का कारण बन जाते हैं | इन विचारों के समूल नाश पर विमर्श होना ही चाहिए |
हम मनुष्य हैं | हमारा दायित्व है कि हम खुद भी सुखी रहें और प्रकृति के अन्य प्राणियों को भी सुख से रहने दें |
-जय कुमार