रेणुका जी पहुँचते ही सबसे पहले जो चीज दिल को छू गई, वह थी शांति। न शहर की भीड़, न शोर। सिर्फ झील के किनारे बैठी बतखों की आवाज़ और दूर मंदिर से आती घंटियों की धीमी धुन।
माँ रेणुका मंदिर
मैं सबसे पहले माँ रेणुका के दर्शन को गया। मंदिर झील के ठीक किनारे पर है। मुख्य मंदिर में माँ रेणुका की मूर्ति सोने-चाँदी के आभूषणों से सजी हुई है। कहते हैं कि परशुराम जी की माता यहीं तपस्या करती थीं। मंदिर के पीछे परशुराम ताल भी है – छोटा सा, पर बेहद पवित्र। मैंने वहाँ कुछ देर बैठकर ध्यान किया। शाम की आरती का समय था। जब घंटे-घड़ियाल और शंख बजने लगे, तो लगा जैसे सारा वातावरण माँ के चरणों में लीन हो गया हो।
रेणुका झील
झील अपने आप में एक चमत्कार है। 2.5 किलोमीटर लंबी यह प्राकृतिक झील चारों तरफ से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से घिरी है। पानी इतना साफ कि नीचे की मछलियाँ तक दिखती हैं। मैंने बोटिंग की – लकड़ी की नाव पर सिर्फ मैं और माँझी। बीच झील में पहुँचकर उसने इंजन बंद कर दिया। चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा और पानी में दिखते बादल। लगा जैसे समय रुक गया हो।
झील के किनारे एक सुंदर गार्डन है – फूलों की क्यारियाँ, बेंचें, और बीच-बीच में हंसों की मूर्तियाँ। मैं वहाँ दोपहर में काफी देर बैठा रहा। दूर जंगल में मोरों की आवाज़ आ रही थी।
लॉयन सफारी और मिनी ज़ू
झील से थोड़ी दूर रेणुकाजी वन्यजीव उद्यान है। यह हिमाचल का सबसे पुराना मिनी ज़ू और लॉयन सफारी है। मैंने बंद वाहन से सफारी की। दो शेर और तीन शेरनियाँ आराम से धूप सेक रहे थे। हिमालयन ब्लैक बियर को देखकर तो मेरा बचपन याद आ गया – बिल्कुल वही जो हम किताबों में पढ़ते थे।
जामु कोटि मंदिर और परशुराम ताल
दूसरे दिन मैं पैदल जामु कोटि मंदिर गया। झील से लगभग 2 किलोमीटर की चढ़ाई है, लेकिन रास्ते में देवदार के जंगल इतने घने हैं कि धूप भी मुश्किल से अंदर आती है। मंदिर में परशुराम जी की विशाल मूर्ति है। कहते हैं यहाँ परशुराम जी ने अपनी माता रेणुका को अमरत्व का वरदान दिया था। मंदिर के पास एक प्राचीन कुंड है जिसमें साल भर पानी रहता है – चाहे कितनी भी गर्मी पड़े।
रेणुकाजी मेला
मैं खुशकिस्मत था कि नवंबर के पहले हफ्ते में वहाँ पहुँचा। छः दिवसीय प्रसिद्ध रेणुकाजी मेला चल रहा था। पूरा इलाका रंग-बिरंगे झंडों और दुकानों से सजा हुआ था। स्थानीय लोग परंपरागत वेशभूषा में थे। महिलाएँ चाँदी के भारी गहनों और रंगीन शॉल में, पुरुष सिरमौरी टोपी लगाए। शाम को देवता-देवियों की शोभायात्रा निकली – ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते हुए लोग, मानो सारा सिरमौर एक साथ झूम रहा हो।
रहने-खाने की व्यवस्था
रहने के लिए HPTDC का होटल रेणुका बहुत अच्छा है – झील के ठीक सामने कमरे। मैंने वहाँ ठहरा था। सुबह खिड़की खोलते ही झील का पूरा नजारा दिखता था। खाने में सिद्दू, स्थानीय राजमा-चावल और कड़ी बहुत स्वादिष्ट थी। एक छोटी-सी दुकान पर माँ के प्रसाद वाली पंजीरी मिलती है – मैं एक किलो लेकर आया हूँ।
रेणुका जी लौटते समय मन बहुत भारी था। यह जगह सिर्फ पर्यटन स्थल नहीं है – यह एक अनुभव है। प्रकृति, आस्था और शांति का ऐसा संगम शायद ही कहीं और मिले। अगर आप हिमाचल आ रहे हैं और शिमला-मनाली की भीड़ से दूर कुछ सुकून चाहिए, तो एक बार रेणुका जी जरूर आएँ।
मैं तो अगले साल फिर जाने का प्लान बना रहा हूँ – इस बार मेला देखने और झील के किनारे दो दिन और रुकने के लिए।
जय माँ रेणुका!


