प्रकृति ने फिर से अपना विकराल रूप दिखाया है । बादल जीवन के बजाय विनाश बरसा रहे हैं । पर्वत रूष्ट हैं । पर्वतों की ये नाराजगी अकारण भी नहीं है । कारण मनुष्य का लालच और बेवकूफी ही है । पर्वतों से उनकी भूमि छीन ली । जलधाराओं का रास्ता रोक दिया । लेकिन ये सब अधिक दिनों तक चलना भी नहीं था । पर्वत और नदियाँ फिर से अपनी जमीन वापस माँग रहे हैं या कह लीजिए कि हमसे वापस छीन रहे हैं ।
पर्वतों के जड़ें खोद खोदकर आवास बना डालें । बहुमंजिला होटल बना डालें । कितना बोझ सहते पहाड़ ?? कब तक नदियों अपने जल पर नियन्त्रण रख पातीं । और ये कोई अन्त नहीं हैं मानव के हर हस्तक्षेप का उत्तर प्रकृति द्वारा भविष्य में भी दिया जायेगा।
शान्ति की खोज में ऋषि मुनियों ने पर्वतों की ओर रुख किया था। वें यहां ज्ञान की साधना के लिए आए थे । लेकिन आज का मनुष्य सब कुछ हड़प लेना चाहता है । विकास के नाम पर प्रकृति के संतुलन का विनाश किया जा रहा है ।
सरकार को भी पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण की हर गतिविधि का नियमन करना होगा । नही तो जो हाल आज धराली का हुआ है वो अभी और अन्य स्थानों का होगा ।