
रानी शर्मा
घूँघट
मैंने औढा नहीं सिर्फ एक घूँघट , मैंने औढ़ी है थोड़ी सी लोक लाज मैंने निभा दी है थोड़ी मर्यादा और निभा दी है बुजुर्गों …
मैंने औढा नहीं सिर्फ एक घूँघट , मैंने औढ़ी है थोड़ी सी लोक लाज मैंने निभा दी है थोड़ी मर्यादा और निभा दी है बुजुर्गों …
बहुत याद तुम मुझको आती हों माँ कितने नखरे उठाती थी, तुम जो मुझे मानती थी, नहीं खाने बैंगन भिंडी, कहकर जो मै इतराती थी…
जब रुपए के प्रतीक चिह्न के नमूने माँगे गए थे तब ये कहीं भी नहीं कहा गया था कि इसमें किसी विशेष लिपि का प्रयोग क्या जाए …
बहुत जला हूँ मैं , तभी तो तुम देख पाए.. वो राह , जिस पर चलकर.. पायी मन्जिल तुमने | जीता दिलों को तुमने || तेल मेरा थ…